गत वर्ष राधाष्टमी महोत्सव पर राधाजी की कृपा हुई कि जो युगलस्वरूप के चित्र जी देखकर उनके वर्णन में कुछ पंक्तियाँ जुड़ गईं। हिंदी-ब्रजभाषा मिश्रित शब्दों में प्रथम प्रयास है। छन्द-बद्ध तो नहीं हैं, भाषाशुद्धि में, शब्दों के चयन में अनेक भूलें भी कदाचित रह गईं होंगीं... पर सहसा जो लिख दिया यहाँ भी सहज रही हूँ।
ऐसी कृपा हो, कोई शब्द मन में आएँ, वह प्रभुसेवा में आएँ। 🙏
राधाने जो कियो मान, कान्हाने सो बेला जान
निज कर बेनी गूंथ आनन्द को दियो दान ।
आरसी में दिखे नैन, पियारी के सुखचैन
एक टक जुगों तक दरस होते दिन रैन ।
पलक जो झपकत, बिरह से डरपत
चन्दर को बरजे, पिय बदर में छिप मत ।
सोभित देख जुगल सुगंधित भए कमल
धन है जीवन आज लाडली प्रकटी भूतल ।।
- भैरवी🙏
#राधाष्टमी 🌷
(राधाजी जो रूठ गईं, कान्हा ने समय परखकर साथ बैठ उनके बाल सँवार वेणी बना दी, ऐसा आनंद दिया। राधाजी को दर्पण में कृष्ण के ही नयन दिख रहे हैं जो उनके जीवन का सर्वोच्च सुख है। दिन रात अनिमेष नेत्रों से उन्हीं के दर्शन करते युग भी बीत जाएँ। तभी जब भी पालक झपक जाती है, वह क्षणार्ध मात्र में भी दर्शन का विलंब लगने से विरह का भय लगता है; और वे पूर्णचंद्र को आज्ञा करती हैं, बादलों के पीछे छुप न जाना, अंधेरा न हो जाए। इस शीतल प्रकाश में युगल स्वरूप की शोभा देख कर रात्रि को भी कमल खिलकर सुवासित हो गए हैं, क्यों कि जीवन धन्य है जो इस काल में लाडली राधिका जी इस धरती पर प्रकट हुई हैं।)
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- BhairaviParag
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