एक घाव
गुजराती भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार 'कलापी' की उपरोक्त कविता का हिंदी में विनम्र भावानुवाद प्रस्तुत है, ...आशा करती हूँ यह प्रयास कविता-प्रेमिओं को पसंद आएगा
पत्थर कठोर उस पंछी पर फैका कैसे, अरेरे, फैक तो दिया
छूटा हाथ से अ र र र र …तब दिल एक धड़कन चूक गया
अरेरे - लगा उस कोमल दिल पर , साँस विहंग की भारी हुई
तरु से नीचे आ गिरा… पंख शिथिल हुईं अब... न उड़ पायीं
प्रिय मेरा पंछी - हाँ , मेरा ही तो है - मेरे ही हाथ से तड़प रहा
जल के छींटे कुछ न लौटा रहे होश, दिल अब मेरा भी रो रहा
कैसे उठता? ज़ख्म उस दिल पर क्रूरता से इसी हाथ ने किया
कैसे उठता? कोमल हृदयी वह, यह जान कर भी तोड़ दिया
अहा! आँखे ज़रा तो खुलीं....दर्द क्या उसका कम हुआ होगा?
जान तो बचेगी ना? पर मृत्यु की गति कौन बता पाया, भला?
जीवन उसने क्या जिया…अहा! रहा मधुर गीत गाता सदा
बगिया के रास मधुर फल चखता, चहकता रहता फुदकता
अरे अरे...किन्तु अब मेरे पास वह शायद फिर कभी न आएगा
आयेगा तो भी भय से काँपता, फिर दूर उड़ जाना चाहेगा
अरेरे श्रद्धा जो अस्त हो गयी, वह किसी काल फिर न आये
जो लगे घाव हृदय पर, भूलने का सामर्थ्य क्या कोई पाये?
Translation in Hindi by BhairaviParag
Original Gujarati kavita -Ek Gha - By Kalapi
Is gujrati poem me ek line mai 17 full character hi aate hai like as
ReplyDeleteતે પંખી ની ઉપર પથરો ફેંકતા ફેંકી દીધો,
છુટ્યો તે ને અરરર! પડી ફાળ હૈયા મહીં તો!
That's right. I couldn't maintain the same brevity & metre when expressing the same thoughts in Hindi. Hence, भावानुवाद, not भाषान्तर. Original remains unmatched, as it should be, ofcourse.
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