एक हँसी, एक आस, आँखों की नमी
एक आंधी, एक सागर, खुला आसमाँ
तुम से कुछ न छुपायेंगे
किस पुकार को सुन उठी मन में सिसक,
किस ताल को सुन गए पाँव थिरक,
किन आँखों में दिखी अपनी ही ज़लक...
हर याद से नाता निभाएंगे
वह फूल खिला, उसने क्या कहा,
जो हवा चली, क्या इशारा कर गयी,
बूंदों ने बरस कुछ गुनगुनाया,
तुम्हें भी गा कर सुनायेंगे...
खुली किताब में सजे जो शब्द,
फूलों सी महक फैला हैं रहे,
बरसेंगे वो फूल, समेट के उन को
नव रंग कई हार बनायेंगे
जिसने है बनायी ये दुनिया सकल,
जिसने इस मन को बनाया कोमल,
जिसने किया लिखना यह गीत सरल,
उसे ही कर अर्पण मुस्कायेंगे
एक आंधी, एक सागर, खुला आसमाँ
तुम से कुछ न छुपायेंगे
किस पुकार को सुन उठी मन में सिसक,
किस ताल को सुन गए पाँव थिरक,
किन आँखों में दिखी अपनी ही ज़लक...
हर याद से नाता निभाएंगे
वह फूल खिला, उसने क्या कहा,
जो हवा चली, क्या इशारा कर गयी,
बूंदों ने बरस कुछ गुनगुनाया,
तुम्हें भी गा कर सुनायेंगे...
खुली किताब में सजे जो शब्द,
फूलों सी महक फैला हैं रहे,
बरसेंगे वो फूल, समेट के उन को
नव रंग कई हार बनायेंगे
जिसने है बनायी ये दुनिया सकल,
जिसने इस मन को बनाया कोमल,
जिसने किया लिखना यह गीत सरल,
उसे ही कर अर्पण मुस्कायेंगे
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