Wednesday, July 16, 2014

सोचती हूँ

सूरज सी रोशन हर दिशा ज़मीं पर,
फिर आँखें सितारे क्यों ढूँढती हैं...
झिलमिला जाएं कभी कहीं वह,
एक पल चमक कर, क्यों झुकती हैं

आंधी सी तेज़ हवा चंचल चलती,
बह न जाए उसमें एक कागज़ कहीं...
क्या लिख दिया उस कागज़ में भला,
मन की धड़कनें तेज़ क्यों चलती हैं

संजोए हीरे सा अनमोल एक राज़,
है तो ज़रूर दिल को उस पर नाज़,
छलक न उठे क्यों उसकी रौशनी...
सिमटी सी ही दिल में क्यों रहती है

-BhairaviParag

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