Thursday, July 31, 2014

श्रावण

श्याम घन छाए अम्बर पर,
चहु ओर छाई हरियाली,
टप टप थिरकत जल की बूंदें,
पत्तों की हथेली पर देत ताली

शीतल पवन झुला रहा झूला,
झूल रही बाला भोली भाली,
ठेक देत तृण भरी धरती पर,
फिर झूले ऊंचे, हँसे, उड़े निराली

भीग गया तन और अंतर मन,
नाच उठी अल्हड़ मतवाली
पनिहारी,चलत जो जा रही पनघट,
थम कर, खो गयीं अँखियाँ दो काली

श्रावण की प्रिय घटा ऐसी छाई,
मन का हर संशय हो रहा खाली
जा, गयी आँगन वह सांवरे के,
लता रही अब घेरे वृक्ष की डाली

-BhairaviParag

Friday, July 25, 2014

हर रंग के गीत सजायेंगे

एक हँसी, एक आस, आँखों की नमी
एक आंधी, एक सागर, खुला आसमाँ
तुम से कुछ न छुपायेंगे

किस पुकार को सुन उठी मन में सिसक,

किस ताल को सुन गए पाँव थिरक,
किन आँखों में दिखी अपनी ही ज़लक...
हर याद से नाता निभाएंगे

वह फूल खिला, उसने क्या कहा,

जो हवा चली, क्या इशारा कर गयी,
बूंदों ने बरस कुछ गुनगुनाया,
तुम्हें भी गा कर सुनायेंगे...

खुली किताब में सजे जो शब्द,

फूलों सी महक फैला हैं रहे,
बरसेंगे वो फूल, समेट के उन को
नव रंग कई हार बनायेंगे

जिसने है बनायी ये दुनिया सकल,

जिसने इस मन को बनाया कोमल,
जिसने किया लिखना यह गीत सरल,
उसे ही कर अर्पण मुस्कायेंगे

Wednesday, July 16, 2014

जियो

जियो तो ऐसे जियो, दिल से
जो कोई मिले बोल उठे...
"क्या जी रहे हो यार
जीवन हो तो हो ऐसा

बादल घिरे हैं घने हर तरफ
कहाँ से चमकी यह किरण
जिसका आइना बना तुम्हारा चेहरा
उजाला वो भी फैला रहा

कुछ कह दिया तुम्हें किसी ने
मैंने भी सुना, था कुछ रुखा सा
तुम रूठे तो नहीं, बरसा रहे
फिर भी अपनापन ही उतना

उत्सव हो जिस दिन,
तुम्हारे साथ और खिल उठा
मेला लगा हर दिन खुशियों का
क्यों खोजें मीत मिलने को बहाना

खुल के ली साँस, गलती जो की भी, तो नयी
भरी उड़ान सितारे छूने को
न भी मिले जो तारे, चाँद तो छुआ
'काश यह किया होता' तो न  कहा

बाँटा जो था मीठा हमेशा
जो कुछ परोसा गया खट्टा तीखा
साँसों से हल्का कर दिया,
आँखों से लगा अपना लिया"

और फिर एक दिन… 

"तुम जा रहे लम्बे सफ़र पर
पता है खुश ही रहोगे हर जहाँ
मिलेगा कोई, जिस से बात करते
खिलेगा दिल, पहचान लेंगे तु ही लौट आया"

-BhairaviParag 

Loved this :)

सोचती हूँ

सूरज सी रोशन हर दिशा ज़मीं पर,
फिर आँखें सितारे क्यों ढूँढती हैं...
झिलमिला जाएं कभी कहीं वह,
एक पल चमक कर, क्यों झुकती हैं

आंधी सी तेज़ हवा चंचल चलती,
बह न जाए उसमें एक कागज़ कहीं...
क्या लिख दिया उस कागज़ में भला,
मन की धड़कनें तेज़ क्यों चलती हैं

संजोए हीरे सा अनमोल एक राज़,
है तो ज़रूर दिल को उस पर नाज़,
छलक न उठे क्यों उसकी रौशनी...
सिमटी सी ही दिल में क्यों रहती है

-BhairaviParag

पलकों पे रहते हैं

सुना कई बार बड़ी सुन्दर है इन आँखों की चमक...
राज़ ना है छुपा, पर फिर भी आज बताते हैं.
कदम जब पड़ते, ज़मीन पर क्यों फूल बिछ जाए,
क्यों हँसी आँखों से हर एक पल छलकी जाए

धुप सुनहरी, छाँव शीतल, क्यों सम ही लगती,
नींद आए जब, क्यों सपने मधुर गुनगुनाएं
बस इशारे ही कैसे मन की बात बता जाते,
सारा संसार कैसे क़दमों में सिमट जाए

क्यों है विश्वास सा, की सब है जैसा होना था,
क्यों साथ साहसों की राह निकल पड़ते हैं,
बादलों से हलके क्यों ना उड़े आसमानों में... 
एक दूजे की पलकों पे रहा करते हैं!

- BhairaviParag   :)

उस तारे को

सितारा तुम दूर
एक हो लाखों में
प्रकाश हल्का शीतल
देते रहते, छंटता अंधेरा
ऐसा क्यों लगता
तुम हो अपने से
हाथ बढाऊँ जो
मिल जाओगे
प्यारे नाज़ुक फूल से
सजाकर रखूं मंदिर में
पूजा करता रहे यह मन
दिशा कल्याणी सदा
दिखाते रहो तुम
झिलमिलाते मुस्कुराते
हमेशा की तरह

-BhairaviParag