Sunday, February 01, 2015

मैं बारिश में गीला गीला हो गया

घर से निकला, माँ ने छाता नहीं दिया था
पता नहीं था, बादल ने क्या सोच लिया था 
ठंडा ठंडा मैं, वो नीला नीला हो गया 
मैं बारिश में गिला गिला हो गया 


बारिश की बूँदें मेरी नाक पर नाचतीं 
कुछ तो तूफानी, कान के भीतर भी जातीं 
पाँव मेरा कीचड से चिपकिला हो गया 
मैं बारिश में गिला गिला हो गया 

पेड़ सारे नए हरे भरे हो गए 
पानी में नहाकर साफ़ सुथरे हो गए
रास्ता सारा ज़रने सा रसीला हो गया
मैं बारिश में गिला गिला हो गया 

घर पहुंचा तब तक एक छींक आ गयी 
स्कूल में कल छुट्टी होगी, उम्मीद छा गयी
पर हल्दी वाले दूध से फिर स्फुर्तीला हो गया 
मैं बारिश में गीला गीला हो गया
- BhairaviParag 
(Written in partnership with my 9 y o son, 
who gave the original idea and many lines, too)


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