Wednesday, April 27, 2016

वलय

Situations do not leave a mark on a mind that is one with the vast creation, just as no images lie permanent on a mirror. Disturbances, if any, only last for a few moments, like ripples in water...and as time flies, they only add to the richness of understanding of life.

शांत जल एक सरोवर में
उस में साफ़ स्पष्ट
दिख रहा
प्रतिबिम्ब आकाश का 
हर प्रहर बदलता, बिना छाप छोड़े
हवा से ज़रा सा कभी कभी कांपते 
उस पानी को सूर्य की किरणें चमका रहीं 
जैसे रत्न झिलमिलाते रहते

नीरव है वातावरण
बस कुछ पंछी ही उड़ रहे
 
तभी कोई आया टहलता 
उसी निःशब्दता की तलाश में

शायद आदत नहीं थी उसे
जल से आकाश से एक हो कर 
बस एक हो कर कुछ देर बैठने की
उठाया एक
पत्थर किनारे से
क्या देखना था...कितनी दूर जाता है?
पता नहीं...बस उठाया
तानकर फैका पानी में

...छपाक... 
जा गिरा सरोवर में
पानी उड़ा थोडा
उड़ती बूँदें भी ज़रा सी चमकीं धुप में
फिर मिल गयीं ताल में
मछलियाँ चौंकीं, तैर दूर गयीं
पक्षी भी उड़े एक आवाज़ दे कर
जल में कुछ वलय बने
फ़ैल कर कुछ बड़े बन
फिर मिल गए समतल में
झिलमिलाते आसमानी दर्पण के 
 
हाँ, एक बात तो है
वह पत्थर भी तो गीला हो गया
जब गिरा जल में
बस गीला ही नहीं
डूब गया है पूरा ही
पानी में, बैठ गया तल में

अब पानी की मछलियाँ
खेलेंगी आसपास, तैरती हुईं
बनाएँगी घर उसी पत्थर के पीछे
इस तालाब का छोटा सा
एक हिस्सा ही बन गया
वह पत्थर जो गिरा
एक बार....छपाक से
 
-BhairaviParag

2 comments: